हैरान-परेशान

वे पीछे से आए और मेरी पीठ पर धौल जमाते हुए बोले- "क्या बात है! आज जश्न का दिन है। और तुम मायूस बैठें हो।"

मैंने आंख फाड़ कर उनकी तरफ देखा। फिर पूछा- "किस बात का जश्न?"

"ये लो! सरकार के पिछले कार्यकाल के महान कामों में से एक की पांचवी वर्षगांठ है और पूछ रहे है किस बात का जश्न! रविशंकर से लेकर हर एक मंत्री ने इस काम की तारीफों के पुल बांधने के लिए कई प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी भूल गये? उनकी बातें याद कर लो तो मालूम पड़ जाएगा कि 8 नवंबर को, 5 साल पहले की गई नोटबंदी के क्या-क्या फायदे थे! कितनी शान से, सलीके से झूठ बोला जा सकता है। अब 5 साल होने को आए और तुम जश्न नहीं मना रहे हो।"

मैं क्या कहता। गर्दन झुका के चुपचाप बैठ गया। उन्हें तो मजा आ गया मेरी तो दशा देख कर। बोले- "चलो, नोटबंदी की पांचवी वर्षगांठ मत मनाओ। अपने साहेब के रात के 8 बजे बोले गये डरावने वाक्य- 'भाईयों और बहनों' की पांचवी वर्षगांठ ही मना लो। अरे, आज भी घोषणा हो जाए कि साहेब रात को 8 बजे देश को संबोधित करेंगे तो लोग खुद ही लाइन में लग जाएंगे। लाइन किसके बारे में होगी, यह बाद में तय कर लेंगे।" कह कर वे हंस दिये।

मेरे तन बदन में आग लग गई। दिल पर सांप लोट गया। मन हुआ कि चिल्लाऊ- '…….मारो गद्दारों को।' मगर वर्षों की दोस्ती का लिहाज कर गया। वैसे इन दिनों राजनैतिक बहस बाजी में ऐसा लिहाज चलता नहीं। मैंने कहा- "साहेब, जो करते हैं, कहते हैं, लोगों के भले के लिए, देश के उत्थान के लिए के लिए करते है। अब उसके लिए क्या तारीफ बटोरना!"

"क्या बात है! इसी को कहते हैं सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। अरे भाई, सुप्रीम कोर्ट के डंडे के बाद वैक्सिन देते हो और कई गुना खर्चा करके विज्ञापनों के जरिए उसे भुनाते हो। अब कह रहे हो कि नोटबंदी का उत्सव हम नहीं मनायेंगे। इसे कहते हैं मीठा मीठा, आ आ। कड़वा कड़वा, थू थू।"- उन्होंने कहा।

मैंने कहा-"इसमें कड़वा क्या था? देश में नए नोट आ गए। रंग-बिरंगे। लाईन में लग कर लोगों में आपस में मेलजोल बढ़ गया। लोग इसी कामकाज में लगे रहे डेढ़ दो महीना। और वक्त त्योहारों की तरह गुजर गया।"

"हां, इतिहास गवाह है। मोहम्मद तुगलक ने भी अपने सिक्के चलाए थे। चल नहीं पाए। सिक्कों की कीमत से ज्यादा, धातु का मूल्य था। जैसे कालाबाजारी में हजार रुपये के नोट से ज्यादा महत्व काला बाजारियों लिए दो हजार के नोट का है।" -उन्होंने कहा।

"देखिए, सोच समझकर शब्द बोलिएगा। UAPA लग गया तो आप जैसे थोड़े बहुत लोग चिल्ला चिल्ला कर आसमान सर पर उठा लेंगे। पहले पता कर लीजिए जैसे हरियाणा में गोरखधंधा शब्द पर पाबंदी हो गई वैसे देश में तुगलकी शब्द पर तो रोक नहीं है।"- मैंने कहा।

"हां भाई, अब तो मुंह पर टेप लगा लेते हैं। जब 'भाइयों बहनों' बोलोगे तब लाइन में लग जाएंगे। कभी नोट के लिए, कभी वोट के लिए, कभी ऑक्सीजन के लिए, कभी अंतिम क्रिया के लिए, कभी टीके के लिए।" और वे सिर झुका कर चल दिए।

मैं भी सोच में पड़ गया। विस्टा प्रोजेक्ट की साइट पर भी साहेब जाते हैं, तो इवेंट बन जाता है। फिर नोटबंदी जो- काला धन समाप्ति के लिए, जाली नोट खत्म करने के लिए, बाजार में कागजी मुद्रा कम करने के लिए और न जाने क्या-क्या कारणों से की गई थी कहीं उसमें कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गई? इस कारण उत्सव मनाने का यह अच्छा मौका हाथ से निकल गया।

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